Mastaram Hindi Kahani – वासना में मेरे ब्लाउज पेटीकोट खुलने लगे

Mastaram Hindi Kahani – वासना में मेरे ब्लाउज पेटीकोट खुलने लगे

Mastaram Hindi Kahani

घडी में सुबह के 10:30 बज गए थे और मेरे पति आलोक बेसब्री से रंजन का इंतज़ार कर रहे थे, जिसे 10 बजे आना था अपने रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम का डेमो देने के लिए. हमको ये सिस्टम नए घर के लिए लगवाना था जिसमें कुछ समय पहले ही रहने आये थे. Mastaram Hindi Kahani

जब से मेरा गर्भपात हुआ था, मैं अवसाद में चली गयी और आलोक मुझे फिर अपने होम टाउन ले आये मेरी सास के पास. पर वहा महीने भर रहने के बाद भी मेरी स्तिथि में सुधार नहीं हुआ. तब आलोक ने इसी शहर के बाहरी भाग में एक नया घर खरीद लिया. नए घर में आने के बाद मेरी मानसिक स्तिथि में थोड़ा सुधार होना शुरु हुआ.

रंजन पुराने वाले घर का पडोसी और आलोक का मित्र भी था. आलोक ने रंजन को फ़ोन किया और पता चला की वो रास्ते में ही हैं और पहुंचने वाला हैं. पौने ग्यारह के बाद रंजन पंहुचा, आलोक ने आते ही शिकायत शुरू कर दी कि उसका ऑफिस का कॉल हैं 11 बजे इसलिए उसे 10 बजे बुलाया था.

मेरी हालत की वजह से आलोक ने ऑफिस का काम घर से ही करना शुरू कर दिया था और कभी कभार ही ऑफिस जाता था. हमारा बच्चा अधिकतर दादी के पास ही रहता था. मुझे इस स्तिथि से निकालने के लिए आलोक ने मुझे ये विकल्प भी दिया की हम बच्चा पैदा करने के लिए फिर से किसी की मदद ले सकते हैं.

पर मैं अब इन सब झमेलों में नहीं पड़ना चाहती थी. रंजन ने अपने सारे कागजात जल्दी से बेग से बाहर निकाले. आलोक और मैं उसके दोनों तरफ बैठ कर सुनने लगे. थोड़ी ही देर में आलोक उठे और बोले मुझे कॉल के लिए जाना हैं.

मेरे से कहा तुम सब अच्छे से समझ लेना और बाद में मुझे समझा देना, मैं बाहर गार्डन के पास वाले कमरे में बैठ कर कॉल अटेंड करूँगा और मुझे डिस्टर्ब मत करना एक घंटा लगेगा.

अब रंजन ने मुझको समझाना जारी रखा कि प्लांट कैसे काम करता हैं. अब वो अपने प्लान बताने लगा तो मैंने कहा थोड़ा ब्रेक लेते हैं, मैं चाय बना देती हूँ, चाय पीते पीते समझते हैं. जैसे ही मैं उठी एक चीख के साथ अपना घुटना पकड़ कर फिर सोफे पर बैठ गयी.

रंजन घबरा गया. मैंने कहा कि मेरी नस पर नस चढ़ गयी हैं. मुझे कभी कभी ऐसा होता हैं. रंजन ने कहा, अब ठीक कैसे होगा, आलोक को बुलाऊ. मैंने कहा, उन्होंने डिस्टर्ब करने से मना किया था, आप थोड़ी सहायता करके मुझे अंदर बिस्तर तक छोड़ दे.

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मैं एक टांग पर खड़ी हो गयी दूसरी टांग घुटने के बल मोड़ रखी थी. रंजन ने मुझ को सहारा देते हुए अंदर बिस्तर पर लेटा दिया, मैंने एक टांग लंबी लेटा दी पर दर्द वाली टांग घुटनो से मोड़ कर खड़ी रखी थी. पूरा चेहरा बेचैनी से पसीने से भीगा था. मैंने अपना साड़ी का पल्लू कंधे से निकाला और हवा करने लगी.

रंजन ने पंखा तेज गति पर चला दिया. मैंने रंजन को दराज़ में रखे बाम को लाने के लिए कहा. रंजन ने बाम लाकर मेरे हाथों में रखा और कहा कि तुम आराम करो मैं किसी और दिन आ जाऊंगा डेमो के लिए.

मैं बाम लगाने के लिए उठने लगी कि दर्द के मारे फिर लेट गयी. रंजन रुक गया. मैंने कहाँ – आपको तकलीफ ना हो तो आप यह बाम मेरे घुटनो पर लगा देंगे. रंजन थोड़ा हिचकिचाया पर मेरी तकलीफ देख आगे बढ़ा और बाम ले लिया.

एक हाथ से मेरा पेटीकोट साड़ी सहित मुड़े हुए घुटनो पर से हटा दिया. मेरी गोरी चिकनी टांग और जांघो का कुछ हिस्सा दिखने लगा था. अब जैसे ही उसने वो बाम लगाया, मैं दर्द से चीखी और दर्द के मारे रंजन के दूसरे हाथ की कलाई जोर से पकड़ अपनी तरफ खिंच ली, रंजन तुरंत रुक गया.

मैंने पकड़ थोड़ी ढीली की तो रंजन का हाथ मेरे पेट पर आ गया. अब वो बहुत हलके हाथ से मेरे घुटने पर बाम लगाने लगा. रह रह कर मैं दर्द से रंजन की कलाई दबा लेती और छोड़ देती जिससे रंजन का हाथ मेरे पेट पर ऊपर नीचे होता रहा.

बाम लग चूका था, मैंने अभी भी रंजन की कलाई पकड़ रखी थी. मैंने कहा कि अब थोड़ी राहत हैं, और रंजन से कहा कि अब वो धीरे धीरे मेरे मुड़े घुटने को सीधा कर देगा. जैसे ही रंजन ने ऐसा करना चाहा, मैंने जोर से दर्द के मारे उसकी कलाई को खींचा जिससे रंजन का हाथ अब मेरे गले पर आ गया.

रंजन ने अब बहुत ही धीरे धीरे घुटना सीधा करना शुरू किया. हर एक हलके प्रयास के बाद दर्द के मारे मैं एक करवट लेती जिससे रंजन का हाथ गले से हट कर मेरे वक्षो पर आ लगता और मेरे सीधे होते ही फिर गले पर आ जाता. मुझे दर्द के मारे इन सब चीज़ो का अहसास भी नहीं था. अब घुटना सीधा हो गया था और दर्द कम हो चूका था.

मैं बोली आज ही नयी साड़ी पहनी थी, उसको कही बाम के दाग ना लग जाये, पति नाराज़ होंगे नई साड़ी खराब हुई तो. रंजन फिर इजाजत लेकर जाने लगा और मैं साड़ी बदलने को उठने लगी, मैं दर्द के मारे एक आहहह के साथ फिर लेट गयी.

मैंने रंजन को जाने से पहले एक आखरी मदद के लिए कहा कि वो मेरी साड़ी निकालने में मदद कर दे. रंजन फिर से सकपकाया पर एक निसहाय औरत की मदद के लिए उसने वैसा ही किया.

रंजन बोला – शायद तुम इतने कस के कपडे पहनती हो इस वजह से ही तुम्हारे नस की समस्या होती हैं, तुम्हे हमेशा ढीले कपडे पहनने चाहिए और अभी जो पहने हैं वो भी ढीले कर देने चाहिए. ऐसा कह कर वो फिर से थोड़ा बाम घुटनो पर लगाने लगा.

जब से मैं अवसाद में गयी मेरा योगा और कसरत सब छूट गया था. मैं अपने फिगर का ध्यान नहीं रख पायी इस चक्कर में थोड़ा वजन बढ़ चूका था. आलोक भी मेरे थोड़ा ठीक होने के बाद मुझे कह चुके थे कि मैं फिर से अपना पहले वाला रूटीन शुरू कर फिट हो जाऊ. पर मुझे कोई प्रेरणा ही नहीं मिल रही थी. मेरे पहले के कपड़े थोड़े टाइट हो चुके थे.

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मैंने तुरंत रंजन का कहना माना और अपने ब्लाउज के हुक खोलते हुए कहने लगी, मेरे पति कहते हैं कि मैं मोटी हो गयी हूँ, इसलिए मैं कसे हुए कपडे पहनती हूँ. सब हुक खोलने के बाद साइड में पड़ी साड़ी से सीना फिर ढक दिया.

मैंने थोड़ी करवट ली और रंजन को पीछे ब्रा का हुक खोलने को कहा, रंजन ने थोड़ी सकपकाहट से ब्रा का हुक खोलते हुए कहा कि तुम कहाँ मोटी हो, तुम दुबली ही हो. मैं अब फिर सीधा लेट गयी और बोली, तुम मुझे सांत्वना देने के लिए ऐसे ही कह रहे हो, और रंजन का हाथ पकड़ कर अपने पेट पर फेरते हुए बोली मैं मोटी नहीं हूँ क्या?

रंजन ने ना में गर्दन हिलाई और कहा यह एकदम फिट हैं. मैंने कहा शायद मेरे अंदर के कसे वस्त्रो की वजह से तुम्हे महसूस नहीं हो रहा होगा, रुको मैं तुम्हे बताती हूँ कह कर मैं उठने लगी. पर रंजन ने मुझे फिर लेटा दिया और बोला जो भी काम हैं मुझे बताओ.

मैं बोली, मैं अपने अंदर के कसे हुए वस्त्र निकाल कर तुमसे पूछना चाहती हूँ कि क्या में सच में मोटी हूँ. रंजन ने कहा, इसकी कोई जरुरत नहीं तुम मोटी नहीं हो. मुझको यह झूठ लगा, मुझे दूध का दूध और पानी का पानी करना था.

मैंने आग्रह किया कि मैंने पेटीकोट पहना हुआ हैं और रंजन मेरे अंदर के कसे वस्त्रो को उतार सकता हैं जिससे मेरी शंका का समाधान हो सके. मेरी मनोस्तिथि पहले काफी बिगड़ गयी थी और अब सुधार था, पर फिर भी कभी कभार बेवकूफी भरी गलतियां भी कर बैठती थी.

शायद उस वक्त मुझे ऐसा ही दौरा पड़ा था, एक गैर मर्द मुझे सहानुभूति दिखा रहा था और मैं उसको अपना शुभचिंतक मान उस पर हद से ज्यादा भरोसा दिखा बेवकूफी करे जा रही थी.

रंजन ने मन मार कर मेरे पेटीकोट के नीचे से अंदर हाथ डाल कर मेरी पैंटी निकाल दी. फिर मेरे पेट पर हाथ फिराते हुए कहने लगा यहाँ मोटापा नहीं हैं तुम एकदम फिट हैं. मैं उसकी बात पर चाहते हुए भी यकीन नहीं कर पा रही थी.

मैंने कहा, शायद लेटे होने की वजह से मेरा पेट अंदर दबा हुआ हैं. मैं तुरंत उल्टी लेट गयी और गाय की तरह घुटने और हथेली के बल बैठ गयी, और बोली अब चेक करो. मैंने बताया कि मेरा घुटना अब इस स्थिति में अच्छा महसूस कर रहा हैं. रंजन ने मेरे पेट पर हाथ फेरते हुए कहा अब भी कोई ज्यादा फ़र्क़ नहीं हैं और मेरा पेट एकदम फिट हैं.

मैं बोली अब आखरी शंका, शायद पेटीकोट का नाड़ा कस के बंधा हैं इस वजह से फ़र्क़ महसूस नहीं हो रहा होगा, तुम नाड़ा ढीला करो और फिर चेक करो. रंजन ने बिना हिचकिचाहट के मेरा नाड़ा खोल दिया और पेट पर हाथ फेरते हुए बताने लगा सबकुछ ठीक हैं, कोई मोटापा महसूस नहीं हो रहा अभी भी.

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मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. रंजन ने मेरी दो समस्याओ का हल करने में उसकी बहुत मदद की थी. मैं ये भूल गयी थी कि मेरा ब्लाउज और ब्रा के हुक खुले पड़े हैं और अब मेरा पेटीकोट का नाड़ा भी खुल चूका था.

रंजन अपना एक हाथ मेरे पेट और दुसरा कमर पर फेरते हुए कहने लगा, यह एकदम सपाट हैं और किसी मोटापे की चिन्ता की जरुरत नहीं हैं. हाथ फिराते हुए थोड़ी ही देर में उसका पेट वाला हाथ अनायास ही मेरे मम्मो तक जा पंहुचा जहा ब्रा और ब्लाउज के हुक खुला होने की वजह से उसके हाथ सीधे मेरे मम्मो को छू गए और वह उन्हें दबाने लगा.

मुझे अब अहसास हुआ कि मैं किस स्थिति में हूँ. पर मैं रंजन को रोक न पायी, उसने बड़े प्यार से मेरी मदद जो की थी. जब से मैंने गर्भधारण किया और फिर गर्भपात हुआ था, आलोक मुझसे थोड़े दूर दूर ही रहते थे और हमारे बीच शारीरिक संबंध लगभग ना के बराबर थे. “Mastaram Hindi Kahani”

अब रंजन का कमर वाला हाथ आगे बढ़कर मेरे नितंबो की तरफ बढ़ा और मेरे नाड़ा खुल चुके पेटीकोट को नितंबो से नीचे उतार दिया और उंगलिया मेरे नितंबो के बीच फेरने लगा. हम दोनों को पता था कि आलोक को आने में काफी समय हैं, हम दोनों उस छुअन का आनंद लेने लगे.

धीरे धीरे वो आनंद अनियंत्रित होने लगा. काफी महीनो बाद मैं एक बार फिर वो महसूस कर पा रही थी जिन्हे अब तक शायद मिस कर रही थी. रंजन ने अपने नीचे के कपड़े निकाल दिए और मेरे कूल्हों को पकड़ कर अपने लंड से मेरे नितंबो पर बाहर से ही हलके हलके धक्के मारने लगा.

उसके गरम गरम कड़क लंड की छुअन से मेरी गांड और चूत के छेद जैसे लम्बी नींद के बाद जाग से गए और पुरे खुल गए. रह रह कर दोनों छेद बंद होते फिर खुलते और रंजन के लंड के इंतजार में बेताब हुए जा रहे थे.

रंजन ने अपना लंड पकड़ा और मेरे दोनों छेदो के ऊपर रगड़ने लगा. रगड़ते रगड़ते वो अपने लंड की टोपी को थोड़ा दोनों छेदो में से होकर भी गुजार रहा था. वो जान बुझ कर मेरी हालत देख मुझे तड़पा रहा था और मैं तड़प के मारे अपने शरीर को हल्का सा पीछे की तरफ धक्का दे रही थी, ताकि उसके लंड की टोपी मेरे छेद में घुस मुझे थोड़ा सुकून दे सके. “Mastaram Hindi Kahani”

मेरा पूरा शरीर कपकपा रहा था और उसने अचानक अपना लंड मेरी चूत के छेद में घुसा ही दिया. एक गहरी आहहह के साथ जैसे लहरों को साहिल मिल गया. पर रंजन लंड अंदर डाल वही रुक गया, शायद मेरी चूत की गरमाहट महसूस करना चाह रहा था पर मेरी तड़प को ये मंजूर नहीं था.

मैं खुद ही आगे पीछे धक्का मारने लगी. महीनो बाद मिले इस सुकून को जैसे में एक झटके में पा लेना चाहती थी. मेरे धक्को की गति एकदम से बढ़ गयी और मैं पागलो की तरह सब भुला कर लगातार तेज धक्के मारते हुए सिसकिया निकालने लगी. आह्ह आह्ह ओह्ह ओह्ह उह्ह उह्ह उम्म उम्म.

बढे हुए वजन के कारण या लम्बे समय से कसरत नहीं करने से मैं जल्द ही थकने लगी और धक्को की गति कम होने लगी और थोड़ी देर में रुक गयी. लेकिन तब तक रंजन को आग लग चुकी थी. उसने एक जोर का धक्का मारा और मेरी चूत के बहुत अंदर तक अपने होने का अहसास कराया.

उसके बाद वो नहीं रुका, उसने एक के बाद झटके मारते हुए मुझे चोदना शुरू कर दिया. थोड़ी देर चोदने के बाद उसकी सिसकियाँ निकलनी शुरू हो गयी थी. मेरी भी सिसकियाँ निकलनी शुरू हो गयी थी. “Mastaram Hindi Kahani”

उसके झटको से मेरे खुले पड़े ब्लाउज से मेरे मम्मे लटकते हुए आगे पीछे तेजी से हिल रहे थे. थोड़ी देर में मुझे सच्चाई का भी आभास हुआ, कही मैं फिर से पहले वाली गलती तो नहीं कर रही.

मैं: “आह्हह रंजन रुको, कुछ हो जायेगा.”

रंजन: “अब मत रोको भाभी, अब तो पुरे मजे लेने ही दो. देखो, आपको भी मजा आ रहा हैं न? ये लो और जोर से मारता हूँ.”

मैं: “आह्हहह, रुक जाओ, उम्ममम्म मैं प्रेगनेंट हो जाउंगी, तुम समझ नहीं रहे.”

रंजन: “चिंता मत करो, दो बच्चो के बाद मैंने अपनी नसबंदी करा ली थी. अब कोई चिंता नहीं, जम के चुदवाने के मजे लो.”

मैं: “सच में?”

रंजन: “अरे हां, मैं झूठ क्यों बोलूंगा.”

मैं: “तो फिर धीरे धीरे क्यों मार रहे हो, जल्दी जल्दी से कर लो. आलोक के आने से पहले काम ख़त्म कर लो, उसने देख लिया तो मेरी शामत आ जाएगी.”

रंजन ने आव देखा ना ताव जोर से जोर से मुझे चोदने लगा. उसका और मेरा पानी बनने लगा तो उसका लंड फिसलता हुआ चप चप की आवाज करता हुआ मेरी चूत के अंदर तेजी से अंदर बाहर होता रहा.

रंजन: “भाभी, मेरा तो अब पानी निकलने वाला हैं, आपका कितना बाकि हैं?”

मैं: “तुम अपना कर लो, मेरी चिंता मत करो.”

रंजन: “रुको आपका भी करता हूँ.”

उसने अपना लंड मेरी चूत से निकाला और मुझे सीधा लेटा दिया. फिर उसने अपनी दो उंगलिया मेरी चूत में घुसा दी और तेज तेज अंदर बाहर खोदने लगा. उसकी उंगलियों की रगड़ से मेरा नशा फिर चढ़ने लगा. अगले पांच मिनट में ऐसे ही उंगलियों से चोदते चोदते उसने मेरा पानी निकालना शुरू कर दिया था. “Mastaram Hindi Kahani”

मैं अपने हाथ दोनों तरफ फैलाये बिस्तर के चद्दर को पकड़ खिंच कर तड़पते हुए आहें भरे जा रही थी. मुझे लगने लगा अब मैं झड़ने वाली हूँ तो मैंने रंजन को रोका. मैं: “रंजन मेरा अब होने वाला हैं, तुम अब मेरे ऊपर आ जाओ और पूरा कर लो.”

रंजन अब मेरे ऊपर चढ़ गया और मुझसे चिपक कर लेट गया. लेटते लेटते उसने मेरा ब्लाउज और ब्रा को मेरे मम्मो से पूरा हटा दिया और अपना टीशर्ट भी निकाल दिया. उसका सीना अब मेरे मम्मो को दबा रहा था.

उसने एक बार फिर मेरी चूत में अपना लंड डाल दिया. इतनी देर से उसकी पतली उंगलियों से चुदाने के बाद उसके मोटे लंड के अंदर जाते ही मुझे ज्यादा सुखद अहसास हुआ और मेरी चूत में होती रगड़ भी बढ़ गयी थी.

दो तीन मिनट बाद ही हम दोनों बड़ी गहरी और तेज सिसकियाँ भरते हुए एक दूसरे से चुदने के मजे लेने लगे. उसने मेरे दोनों हाथों की उंगलियों में अपनी उंगलिया फंसा ली और झटके मारने की गति एक दम बढ़ा ली. “Mastaram Hindi Kahani”

महीनो बाद झड़ने का लुत्फ़ उठाने के लिए मैंने भी अपनी दोनों टाँगे उठा कर पहले तो उसकी टैंगो पर लपेट दी. थोड़ी देर बाद मैंने अपनी टाँगे और भी ऊपर उठा रंजन के कमर पर अजगर की तरह लपेट दी. मेरी चूत का छेद और भी खुल गया और रंजन मेरी चुत की और भी गहराइयों में उतारते हुए चोदने लगा.

आहह्ह्ह्ह आहह्ह्ह ओहह्ह्ह मम्मी ओ मम्मी आअहह्ह्ह आअह आअ जोर जोर से चीखते हुए हम दोनों एक साथ झड़ गए. काफी समय बाद मैंने अपना काम पूरा किया था तो एक संतुष्टि हुई. हम दोनों उठ कर फिर कपडे पहनने लगे. रंजन ने जल्दी से कपडे पहने और वो बाहर हॉल में चला गया. मैं भी अपनी साड़ी फिर से पहन कर बाहर आ गयी.

सारे पछतावे गुनाह करने के बाद ही याद आते हैं. मेरे साथ भी यही हुआ. मैंने अपनी बेवकूफी में या महीनो की जरुरत पूर्ति नहीं होने से रंजन के साथ गलत काम कर लिया था. मेरी बात कही खुल ना जाये इसलिए मैंने बाहर आकर रंजन को समझाना चाहा. “Mastaram Hindi Kahani”

मैं: “रंजन, किसी को इस बारे में बताना मत.”

रंजन: “क्या बात कर रही हो. मेरे भी बीवी बच्चे हैं, मैं क्यों बताने लगा.”

मैं: “सब कुछ कैसे हुआ पता ही नहीं चला.”

रंजन: “कोई बात नहीं, कभी कभी ऐसा हो जाता हैं. जो भी हुआ अच्छा ही हुआ.”

रंजन ने मुझे रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम के प्लान के बारे में ब्रोचर दिया, ताकि मैं आलोक को बता सकू और जाने लगा.

मैं: “रंजन, प्लीज इसे भूल जाना कि हमारे बीच कभी कुछ हुआ था. जो भी था एक गलती थी.”

रंजन ने आँखों से हां का इशारा कर मुझे सांत्वना दी और वहा से चला गया.

आलोक को मैंने वो ब्रोचर पढ़ा दिया और हमने रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम को कुछ और समय तक नहीं लगवाने का विचार किया. मैंने ही ज्यादा फ़ोर्स किया क्यों कि मैं रंजन का सामना फिर से नहीं करना चाहती थी. “Mastaram Hindi Kahani”

जो भी हुआ गलत था, पर मैंने महसूस किया कि मेरी चेतना लौट आयी हैं. अपनी ज़िन्दगी में मैं जो कमी महसूस कर रही थी क्या वो यही था. क्या मुझे दूसरे मर्दो की आदत पड़ गयी थी, या फिर पति के मुझसे दूर रहने से मेरी जरुरत पूरी नहीं हो पा रही थी.

मैंने कसम खायी कि दो महीनो में, मैं अपना पुराना फिगर पाकर रहूंगी. अगले दिन से ही मैंने योगा और कसरत फिर शुरू कर दिए और खानपान की आदत फिर से पहले वाली कर ली. दो महीनो में ही मुझे परिणाम दिखने लगे और मेरे पुराने कपड़े अब धीरे धीरे फिट आने लगे थे.

आलोक भी अब खुश थे और बच्चे को फिर अपने साथ रख लिया था. आलोक ने इसी शहर की दूसरी खुली ब्रांच में ऑफिस जाना शुरू कर दिया था. मेरी ज़िन्दगी फिर पटरी पर लौट आयी. रंजन के साथ हुई इस एक घटना ने मेरे जीवन को एक सही मौड़ दे दिया था. मैं वापिस उस रास्ते पर नहीं जाना चाहती थी और आलोक के साथ ही अपना तन और मन लगा रही थी.

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